समस्त भारत में श्री हनुमान जयन्ती उत्सव बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है| यह उत्सव श्री हनुमान जी के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है| हनुमान जी श्री राम के अनन्य भक्त हैं तथा ऊर्जा, शक्ति एवं भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं| ऐसा माना जाता है कि श्री हनुमत् जयन्ती के दिन राम-नाम का जाप और हनुमत् भक्ति करने से श्री हनुमान जी हमारी सारी परेशानियों को हर लेते हैं और हमारा हर कार्य सिद्ध करते हैं|
विभिन्न पुराणों एवं वेदों में श्री हनुमत् जयन्ती मनाने के लिए अलग अलग समय और तिथियाँ उल्लिखित हैं| कुछ जगहों पर श्री हनुमत् जयन्ती मार्गशीर्ष मास (दिसम्बर-जनवरी) में मूल नक्षत्र लगने पर मनाई जाती है| बहुत सी जगहों पर श्री हनुमान जयन्ती का उत्सव कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (छोटी दिवाली/नरक चतुर्दशी/काली चौदस) के दिन मनाया जाता है| उसके अलावा अन्यत्र बहुत से स्थानों पर श्री हनुमत् जयन्ती का उत्सव चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है|
प्राप्त प्रमाणों के अनुसार दक्षिण भारत के बहुत से राज्यों में, खासतौर पर तमिलनाडू एवं केरल राज्य में श्री हनुमत् जयन्ती का त्यौहार मार्गशीर्ष मास (दिसम्बर-जनवरी) में जब मूल नक्षत्र का पदार्पण होता है तब मनाया जाता है| इन प्रान्तों में मनाया जाने वाला यह उत्सव कहीं पर पूरा महीना चलता है तो कहीं पर केवल एक दिन के लिए ही मनाया जाता है|
दक्षिण भारत के अलावा भारत के अन्य बहुत से राज्यों में (जैसे- महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश के बहुत से हिस्सों में) श्री हनुमान जयन्ती का आयोजन चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है|
बहुत से पुराणों एवं ग्रंथों के उल्लेखानुसार, श्री हनुमत् जयन्ती कातिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (अर्थात् छोटी दीपावली / नरक चतुर्दशी / काली चौदस) के दिन मनायी जाती है| यह उत्सव काफी धूम-धाम से मनाया जाता है| खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में, तथा बिहार राज्य में श्री हनुमत् जयन्ती उत्सव की धूम देखते ही बनती है| छपरा नगर में मनने वाला श्री हनुमत् जयन्ती सम्पूर्ण उत्तर भारत में सबसे पुरानी और सबसे बड़ी जयन्ती है| यह जयन्ती सन् 1968 से चलती आ रही है| यह जयन्ती कुल 11 (ग्यारह) दिनों तक चलती है|
यूँ तो श्री हनुमत् जयन्ती मनाने के लिए बहुत सी तिथियाँ निर्धारित की गयी हुई हैं, परन्तु प्रभु भक्ति में मनाया जाने वाला उत्सव किन्हीं भी तिथियों पर आश्रित नहीं होता है| प्रभु भक्ति की गंगा निरंतर बहती आयी है और निरंतर ही बहती जायेगी|
"जय श्री राम"
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