|| श्री गणेशाय नमः ||
श्री हनुमज्जयन्ती का संक्षिप्त इतिहास
मैं, बशिष्ठ नारायण सिंह (अवकाश प्राप्त सहायक शिक्षक, उ० मा० विद्यालय, बी सेमिनरी, छपरा), "41वीं श्री हनुमज्जयन्ती समारोह" की समाप्ति के बाद जयन्ती के वर्तमान प्रधान सचिव श्री रणंजय सिंह के बार-बार कहने पर जयन्ती का संक्षिप्त इतिहास लिख रहा हूँ |
सर्वप्रथम, मैं "श्री हनुमान जी" के चरणों की वंदना करते हुए सभी के लिए मांगता हूँ:
" रहै कृपा हनुमंत लला जू |
विनय नाथ है यही हमारी || "
अब मैं जयन्ती के उन समस्त प्रारंभिक आयोजकों और सदस्यों को नमन करता हूँ जो आज हमारे बीच नहीं हैं और जो आज भी जयन्ती की नींव की ईंट की भाँति समय-रुपी मृतिका में मौन दबे हुए हैं |
मैं उन लोगों को भी नमन करता हूँ जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जयन्ती को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सहयोग देते आये हैं, तथा जिनके नाम यहाँ अंकित नहीं होते हुए भी अंकित हैं |
मैं अंत में जयन्ती के वर्तमान संरक्षकों, पदाधिकारियों, आयोजकों, और संचालकों को भी सादर नमन करता हूँ जिनके कुशल नेतृत्व में जयन्ती फल-फूल रही है |
मैं इस जयन्ती से मूल रूप से जुड़ा रहा हूँ | अतः एक प्रत्यक्षदर्शी के नाते, प्रारंभ की सारी बातों से अवगत हूँ | जयन्ती के इतिहास लेखन में, मैं यथा संभव तटस्थ रह कर ही सब कुछ सच-सच लिख रहा हूँ |
मैंने जयन्ती के लिए जिसकी त्याग, निष्ठा और अनुराग को जैसा देखा, जाना और परखा है, उसकी अपनी ओर से वैसी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता | लेकिन, मेरे भी झूठ और सत्य के साक्षी हनुमान जी हैं | यदि किसी को मेरे लेखन से कष्ट पहुंचे तो उसका दोषी मैं हूँ, और क्षमा प्रार्थी हूँ |
जयन्ती के इतिहास में, नगर के मध्य स्थित बी. सेमिनरी उ० विद्यालय के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता है | यह विद्यालय जयन्ती का केंद्र बिंदु है और जयन्ती की धुरी इसी विद्यालय के इर्द-गिर्द घूमती है | जयन्ती की पहली सफल गोष्ठी यहीं हुई | विद्यालय के प्राचार्य स्व० विश्वेश्वर प्रसाद सहित प्रायः सभी शिक्षक धार्मिक विचार के थे | यहीं के शिक्षक जयन्ती के प्रेरणा-स्रोत रहे | इसी विद्यालय के प्रबंध-कारिणी समिति के सभापति ने प्रथम गोष्ठी का सभापतित्व किया और आजीवन जयन्ती के सभापति भी रहे | यहाँ के शिक्षकों और छात्रों ने उन दिनों उदारता-पूर्वक चंदा दिया तथा एक पैर पर खड़े रह कर जयन्ती से जुड़े हर एक छोटे से छोटे तथा बड़े से बड़े काम का प्रबंधन और संचालन किया | बहुत दिनों तक लोग इस जयन्ती को "बी. सेमिनरी की जयन्ती" मानते रहे | यहाँ के शिक्षकों के प्रयास से बहुत सारे अभिभावक, जिनके बच्चे यहाँ पढ़ते थे या पढ़े थे, जयन्ती से जुड़े | उदाहरण के लिए, स्व० श्री रामगोविंद पोद्दार, स्व० श्री नन्द लाल जालान एवं स्व० श्री विश्वनाथ प्रसाद बजाज आदि |
श्री हनुमज्जयन्ती का प्रारंभ सन् 1968 में बाल-बिहार के प्रांगण से हुआ | लेकिन जयन्ती की प्रारंभिक नींव कई वर्षों पूर्व जयन्ती के संस्थापक सदस्यों के हृदय में रखी जा चुकी थी |
जयन्ती के स्थापन वर्ष सन् 1968 से मूलतः जुड़े लोगों में थे:
1. स्व० श्री रायबहादुर बृज बिहारी प्रसाद, भूतपूर्व चेयरमैन, छपरा नगर पालिका
2. स्व० श्री रामगोविंद पोद्दार, नगर के प्रसिद्ध वस्त्र विक्रेता
3. स्व० श्री डॉ राम जी सहाय (होमियोपैथ ), हॉस्पिटल चौक, छपरा
4. स्व० श्री डॉ नवल किशोर सहाय, ( होमियोपैथ), नयी बाज़ार, छपरा
5. स्व० श्री नन्द लाल जालान, प्रतिष्ठित वस्त्र विक्रेता
6. स्व० श्री विश्वनाथ प्रसाद बजाज, प्रतिष्ठित वस्त्र विक्रेता
7. स्व० श्री केदार नाथ लाल, उप-प्राचार्य, बी.सेमिनरी विद्यालय
8. स्व० श्रीनाथ प्रपन्नाचार्य, दहियावां
9. श्री महेन्द्र प्रसाद, छपरा नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन एवं नगर के कुशल अधिवक्ता
10. श्री प्रमोद बिहारी प्रसाद, अवकाश प्राप्त सहायक शिक्षक, बी. सेमिनरी विद्यालय
11. मैं (बशिष्ठ नारायण सिंह), अवकाश प्राप्त सहायक शिक्षक, बी. सेमिनरी विद्यालय
इनमें से आखरी तीन को छोड़ कर बाकी सभी हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु इन लोगों द्वारा प्रारंभ की गयी जयन्ती आज भी सफलतापूर्वक मनाई जा रही है | ठीक ही कहा गया है:
“खिलाडी उठ जायेंगे एक-एक कर के, महफिल सजी रहेगी, बाजी बनी रहेगी”|
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