स्कन्दपुराण के उल्लेखानुसार भगवान महादेव ही भगवान विष्णु के श्री राम अवतार की सहायता के लिए महाकपि हनुमान बनकर अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतरित हुए | यही कारण है कि हनुमान जी को रुद्रावतार भी कहा जाता है | इस उल्लेख कि पुष्टि श्रीरामचरित मानस, अगत्स्य संहिता, विनय पत्रिका और वायु पुराण आदि में भी की गयी है |

हनुमान जी के जन्म को लेकर विद्वानों में अलग-अलग मत हैं | परन्तु हनुमान जी के अवतार को लेकर तीन तिथियाँ सर्वमान्य हैं |

इनमें से पहली तिथि है: चैत्र एकादशी

"चैत्रे मासे सिते पक्षे हरिदिन्यां मघाभिदे |
नक्षत्रे स समुत्पन्नौ हनुमान रिपुसूदनः | |"

इस श्लोक के अनुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र शुक्ल की एकादशी को हुआ था|

एक दुसरे मत के अनुसार श्री हनुमान जी का जन्म चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था | इस मत को निम्नलिखित श्लोक से समझा जा सकता है:

"महाचैत्री पूर्णीमाया समुत्पन्नौ अन्जनीसुतः |
वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन | |"

वैसे, श्री हनुमान जी के अवतरण को लेकर एक तीसरा मत भी है, जोकि नीचे दिए गए श्लोक में उल्लिखित है:

"ऊर्जे कृष्णचतुर्दश्यां भौमे स्वात्यां कपीश्वरः |
मेष लग्ने अन्जनागर्भात प्रादुर्भूतः स्वयं शिवा | |"

इस श्लोक के अनुसार हनुमान जी के अवतार की तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि ही है|

अधिकतर विद्वान् व ज्योतिषी भी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ही श्री हनुमान जी के अवतार की तिथि मानते हैं |

श्री हनुमान जी के अवतार कि तिथियों के समान ही उनके अवतार की कथाएँ भी विभिन्न हैं| इनमें प्रमुख रूप से दो ही कथाएँ सर्वमान्य हैं | उन कथाओं को यहाँ आप सब के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है |

पहली कथा:

विवाह के बहुत दिनों के बाद भी जब माता अंजना को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ तब उन्होंने निश्चय करके अत्यंत कठोर तप किया | उन्हें तप करता देख महामुनि मतंग ने उनसे उनके उस तप का कारण पूछा | तब माता अंजना ने कहा, "हे मुनिश्रेष्ठ! केसरी नामक वानरश्रेष्ठ ने मुझे मेरे पिता मांगकर मेरा वरण किया| मैंने अपने पति के संग में सभी सुखों व वैभवों का भोग किया परन्तु संतान सुख से अभी तक वंचित हूँ | मैंने बहुत से व्रत और उपवास भी किये परन्तु संतान की प्राप्ति नहीं हुई | इसीलिए अब मैं कठोर तप कर रही हूँ | मुनिवर! कृपा करके मुझे पुत्र प्राप्ति का कोई उपाय बताएं |"

महामुनि मतंग ने उन्हें वृषभाचल भगवान वेंकटेश्वर के चरणों में प्रणाम कर के आकाश गंगा नामक तीर्थ में स्नान कर, जल ग्रहण करके वायुदेव को प्रसन्न करने को कहा |

माता अंजना ने मतंग ऋषि द्वारा बताई गयी विधि के अनुसार वायु देव को प्रसन्न करने के लिए संयम, धैर्य, श्रद्धा व विशवास के साथ तप आरम्भ किया| उनके तप से प्रसन्न होकर वायुदेव ने मेष राशि सूर्य की स्थिति के समय चित्र नक्षत्र युक्त पूर्णिमा के दिन उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा | तब माता अंजना ने उत्तम पुत्र का वरदान माँगा | वायुदेव ने वरदान देते हुए माता अंजना को उनके पिछले जन्म का स्मरण कराते हुए कहा, "हे अंजना! तुम्हारे गर्भ से एक अत्यंत बलशाली एवं तेजस्वी पुत्र जन्म लेगा, अपितु स्वयं भगवान शंकर ही ग्यारहवें रुद्र के रूप में तुम्हारे गर्भ से अवतरित होंगे| पिछले जन्म में तुम पुन्जिकस्थला नामक अप्सरा थी और मैं तुम्हारा पति था परन्तु ऋषि श्राप के कारण हमें वियोग सहना पड़ा और तुम इस जनम में अंजना के रूप में इस धरती पर आई हो, इस नाते मैं तुम्हारे होने वाले पुत्र का धर्म-पिता कहलाऊंगा तथा तुम्हारा वो पुत्र पवनपुत्र नाम से भी तीनो लोकों में जाना जाएगा|"

दूसरी कथा:

रावण का वध करने के लिए जब भगवान विष्णु ने श्री राम अवतार लिया, तब अन्य देवतागण भी श्रीराम जी की सेवा के लिए अलग-अलग रूपों में प्रकट हुए | भगवान शंकर ने पूर्वकाल में भगवान विष्णु से दास्य का वरदान माँगा था जिसे पूर्ण करने के लिए वे भी अवतार लेना चाह रहे थे परन्तु उनके समक्ष धर्मसंकट यह था कि जिस रावण का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने श्रीराम का रूप लिया था, वह रावण स्वयं उनका (शिव जी का) परम भक्त था | अपने परम भक्त के विरूद्ध वे श्रीराम जी की सहायता कैसे कर सकते थे, ऊपर से रावण को शिव जी की ओर से अभय का वरदान भी प्राप्त था| रावण ने अपने दस सिरों को अर्पित कर शिव जी के दस रुद्रों को पहले ही संतुष्ट कर रखा था, अतः भगवान शंकर अपने उन दस रुद्रों के रूप में भी श्रीराम जी की सहायता नहीं कर सकते थे, अतः उन्होंने अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतार लिया जो कि हनुमान नाम सारे जग में विख्यात है | हनुमान रूप में भगवान शंकर ने श्री राम जी की सेवा भी की तथा रावण के वध में उनकी सहायता भी की |

ये दोनों कथाएँ श्री हनुमान जी के अवतरण की प्रमाणिकता सिद्ध करती हैं |

इस प्रकार भगवान शंकर ने ही हनुमान जी के रूप में समस्त देवी-देवताओं एवं समस्त मानवजाति का कल्याण किया है | हनुमान जी आज भी इस धरती पर विद्यमान हैं और पापियों से अपने भक्तों की रक्षा कर रहे हैं तथा उनकी आराधना एवं उपासना से बड़े से बड़े कष्ट बड़ी शीघ्रता से दूर हो जाते हैं |

"जय श्री राम"

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